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सूर्यकुमार भाग 2

"अजीब पागल है, कल स्कूल में इसकी खबर लेती हूं"! प्रज्ञा ने मन में सोचा

"पम्मी,,,मैंने, मेली बुद्धि ता पता लदा लिया है, वो तल, अपने घल आएगी"! कुमार ने कहा

"चल,,ठीक है, ड्रेस निकाल दे"! मां ने कहा

अगले दिन, स्कूल में

"अले,,,याल, तेजपाल"! कुमार ने कहा

"तेजपाल नहीं, राजपाल"! राजपाल ने बताया

"हां,,,,वही तेजपाल"! "आज हर तिमत पल, प्रज्ञा को मेले, घल ले जाऊंगा,तभी मुध में बुद्धि आएगी"! कुमार ने अंगूठा चूसते हुए कहा

"ओह,,,मेरा, सोना बेटा"! "प्रज्ञा को अपने घर, ले जाना चाहता है, इसके लिए तुम्हें, उसे इंप्रेस करना होगा फिर गर्लफ्रेंड बनाना पड़ेगा, फिर उस से शादी करनी पड़ेगी, तब प्रज्ञा, तुम्हारे साथ, तुम्हारे घर जाएगी"! स्कूल के शरारती छात्र विक्की ने कुमार से कहा

"तो इछके लिए, मुधे त्या कलना पड़ेगा, डिक्की भैया"! कुमार ने कहा

"डिक्की नहीं, विक्की"! विक्की ने बताया

"हां,,,वही, डिक्की, टिक्की"! कुमार ने कहा

"यह गुलाब का फूल ले जा और प्रज्ञा के सामने, घुटनों के बल बैठकर, उससे कहना "आई, लव, यू"! विक्की ने करके दिखाते हुए कहा

"ठीत है, तुम्हाला फूल दो, मैं अभी दाता हूं"!

कुमार गुलाब लेकर, प्रज्ञा के सामने आकर, घुटनों के बल बैठकर, कहता है -"आई, लू, बू"!

प्रज्ञा ने तमाचा जड़ा, जिससे उसका चश्मा, नीचे गिर गया और हाथ से गुलाब भी छूट गया, फिर प्रज्ञा ने उसके पैर से, उस गुलाब को मसलते हुए कहा -"खरगोश जैसी, मासूम शक्ल और सूअर जैसे, गंदे काम करता है, बेशर्म, गधे"!

"प्रज्ञा क्या हुआ"? विक्की ने पूछा

"कल जबरदस्ती, मेरे घर में घुस आया और आज सबके सामने, मुझे प्रपोज कर रहा है, बेशर्म कहीं का, मैं अभी प्रिंसिपल से इसकी, शिकायत करती हूं"! प्रज्ञा ने धमकी देते हुए कहा

"अरे,,,इसमें प्रिंसिपल के पास, जाने की क्या जरूरत है, और वैसे भी तुम, हो ही इतनी खूबसूरत, पर हम इसे यही सबक सिखा सकते हैं"! विक्की ने कहा

फिर विक्की अपने चार दोस्तों के साथ, कुमार को चारों ओर से घेर लेता है और वह सभी मिलकर, उसकी बहुत मजाक उड़ाते हैं, उसका चश्मा तोड़ देते हैं, कपड़े फाड़ देते हैं, बैग से कॉपी-किताबें, निकालकर उड़ाते हैं और उसे पिटते भी है, कुमार, रोता हुआ, सब कुछ सह लेता है

फिर वह निराश, मायूस होकर, अपने घर आता है और अपनी मां से कहता है -"पम्मी,,,मुधे, डिक्की और उछके दोस्तों ने बहुत माला औल मेला चच्मा, तिताबें, बैद, थब तोलफोल दिये"! कुमार ने रोते हुए कहा

"पहले तो छोटी-मोटी गलतियां करता था, अब लड़कियां छेड़ता है, दूसरों की बहन-बेटियों को छेढ़ेगा तो लोग मारेंगे ही, बता तूने ऐसा क्यों किया"? मां ने मारते हुए पूछा

"पम्मी,,,मैंने उसे नहीं छैला था"! कुमार ने बताया

"झूठ बोलता है, प्रज्ञा ने खुद, मुझे आकर बताया, झूठ भी बोलने लग गया है, जा कहीं जाकर, मर जा"! मां ने फिर चांटा मारते हुए कहा

"पम्मी,,,मरते तैसे हैं"? कुमार ने पूछा

"नदी में कूद कर, मर जा"! माँ ने गुस्से से कहा

कुमार अपने आंसू पोछकर, भागता हुआ, नदी के तट पर आता है और उसमें कुद जाता है और डूब जाता है फिर बहता हुआ जंगल में आ जाता है, उसका शरीर, नदी के किनारे, पत्थरों पर पड़ा है, वहां एक साधु, पानी पीने आता है तो उसे कुमार दिखाई देता है, वह साधु, उसके पेट से पानी निकालता है और उसे अपने कंधों पर उठाकर, एक गुफा में ले आता है और लेटा देता है

फिर उसके हाथ की नस चेक करके कहता है -"अभी यह पूर्ण रूप से काल के जाल में नहीं गया है, अभी इसके जीवित होने की संभावना है, फिर उस साधु ने अपने झोले से औषधि निकाली और कुमार के मुंह में रखी और उसके सिर पर हाथ रखकर, महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया "ॐ त्र्यम्बकं यजामहेसुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्"! "उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्"!!

तभी कुमार के शरीर में हलचल होती है और वह धीरे से अपनी आंखें खोलता है -"आप तोन हो"? कुमार ने पूछा

"मैं देवगुरु, बृहस्पति हूं, नीति ने मुझे, एक कार्य सोंपा है, वही करने यहां, आया हूं"! साधु ने कहा

"आपता नाम, तही छुना है, अब यह बताओ, मैं, दिंदा हूं या मल गया हूं"! कुमार ने पूछा

" ईश्वर ने तुम्हें, नया जीवन दिया है, तुम जीवित हो पर तुम, मरना क्यों चाहते हो"?साधु ने पूछा

"मेली मां ने कहा,नदी में तुदकल मर जा, अब मैं वापस मलने जा रहा हूं, अब मुधे, मत बताना"! कुमार में जाते हुए कहा

"रुको,,,तुम्हारी माता ने तुम्हें,मरने का कहा और तुम नदी में कूद गए, तुम्हें अपने जीवन से प्रेम नहीं है"! साधु ने पूछा

"मैं,,,मेली माँ ती हल बात मानता हूं, अगल नहीं मला तो वह मुधपल, फिल तिल्लाएगी इथलिए, मुधे मलना पलेगा"! कुमार ने रुक कर कहा

"कितने भोले और सच्चे हो तुम पर तुम्हें यह नहीं पता, जब तुम मर जाओगे तो तुम्हारी मां बहुत दुखी होगी, इसलिए मृत्यु का ख्याल निकाल दो"! साधु ने समझाते हुए कहा

"अले,,, छाधु बाबा, मुधे मत छमजाओ, में भोत  छमजदाल हूं"! कुमार ने जाते हुए कहा

"सोच क्या रहे हो बृहस्पति, यही तो वह मनुष्य है, जिससे भविष्य की विधि का विधान जुड़ा है, इतना सच्चा, निष्कपट मानव, और कहां ढूंढोगे"! साधु ने यह विचार कर कहा -"रुको,,,मैं जिस मनुष्य की तलाश, में यहां आया हूं, वह, तुम ही हो, मैं, तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं"! साधु ने कहा

"त्या लाए हो"? कुमार ने पूछा

फिर साधु अपने हाथों में एक, लाल वस्त्र से ढंकी दिव्य वस्तु, जिसके अंदर से रोशनी निकल रही है, कुमार के हाथों में सोंपता है! इसे हाथों में लेते ही कुमार को एक दिव्य ऊर्जा की अनुभूति होती है -"मैं,,हिमालय पर तपस्या कर रहा था, तब मुझे, यह दिव्य वस्तु दिखाई दी ओर जैसे ही मैंने, इसे छुआ, एक आकाशवाणी हुई -"देवगुरु"! "बृहस्पति आपको, इस दिव्य वस्तु को ऐसे मानव तक पहुंचाना है, जिसके सच्चे हृदय में किसी के लिए कपट ना हो, जिसे मृत्यु से भय न लगता हो और जो अपने वचन को निभाने के लिए, प्राण देने में भी संकोच ना करें, वह सभी विशेषताएं, तुम में है, इसलिए यह दिव्य वस्तु में, तुम्हें देता हूं, आज से इस पर केवल, तुम्हारा अधिकार है, इसके विषय में किसी को बताना मत, संसार पर कोई बड़ी विपदा आने वाली है, इसलिए ईश्वर ने तुम्हें, इस कार्य के लिए चुना है"! साधु ने कहा

कुमार ने उस वस्तु को आंख बंद कर, अपने मस्तक से लगाया और आंखे खोली तो वह साधु, वहां से गायब हो गया,

"कुमार"! "कुमार"! तभी उसे अपनी मां की आवाज सुनाई दी

उसकी मां उसे घर में आवाज दे रही है, पर इस दिव्य वस्तु के प्रभाव से उसे, वहां गुफा में आवाज सुनाई दे रही है

"बोलो, माँ"!कुमार ने मां के पीछे से कहा

"कहां गया था, सुबह से और यह तेरे हाथों में क्या है"? मां ने पूछा

"मां,, इसमें, धार्मिक किताबें हैं, पढ़ने के लिए लाया हूं"! कुमार ने कहा

"तूने एक भी शब्द, तोतला कर नहीं कहा, तेरी जुबान  ठीक हो गई है क्या"? माँ ने पूछा

"हाँ,,,मेरे सभी नट-बोल्ट टाइट हो गए हैं"! कुमार ने कहा

"मैं, मंदिर जा रही हूं, खाना खा लेना और घर का ध्यान रखना"! माँ ने जाते हुए कहा

फिर कुमार अपने कमरे में आता है, दरवाजा लगाता है और उसे दिव्य वस्तु से धीरे-धीरे लाल कपड़ा हटाता है, उसके सामने, एक कवच और दो कुंडल है, कवच पर बड़ा सा सूर्य का चित्र है और शानदार नक्काशी है, कुंडल अर्थ चंद्र जैसे दिख रहे हैं, कुमार ने अपना शर्ट निकालकर, कर कवच पहनता है तो उसे अपने शरीर में, दिव्य शक्ति का अनुभव होता है और वह सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है फिर वह कुंडल पहनता है तो कुंडल पहनते ही, उसकी आंखों की रोशनी, उसके सुनने की शक्ति, सुंघने की शक्ति और सोचने की शक्ति, बहुत तेज हो जाती है!

तभी माँ कहती है -"कुमार"! "कुमार"! और दरवाजा खोल देती है

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1 Comments

hema mohril

11-Oct-2023 09:40 PM

V nice

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